रतन चंद ‘रत्नेश’
साहित्य की विभिन्न विधाओं में अब तक लगभग डेढ़ सौ पुस्तकें लिख चुके सम्मानित लेखक मधुकांत की सद्यप्रकाशित पुस्तक ‘किशोर नाट्यमाला’ अपने शीर्षक के अनुरूप नौ किशोर नाटकों को समेटे हुए है। ये मुख्यतः शिक्षण, पर्यावरण, नारी-सुरक्षा व राष्ट्रीय चेतना से जुड़े मसलों पर केंद्रित हैं जो शिक्षाप्रद होने के साथ-साथ सकारात्मक संदेश देती हैं। इसमें शिक्षण-संस्थान से जुड़े पांच नाटक हैं। शिक्षा के नाम पर प्राइवेट स्कूलों में जो गोरखधंधा चलता है और किस कदर लोग उसके मायाजाल में फंसते हैं, उसे ‘प्रवेश’ में दर्शाया गया है। एक सरकारी स्कूल के अध्यापक को भी यही लगता है कि उसके बच्चे का भविष्य प्राइवेट स्कूल में ही बनेगा परंतु उसकी आंख तक खुलती है जब उसी के स्कूल का चपरासी उदाहरण देकर बताता है कि सरकारी स्कूल में पढ़े बच्चे उच्च पद पर आसीन हो रहे हैं। ‘नकल का नकेल’ अपने नाम के अनुरूप अपने उद्देश्य को प्रतिपादित करता है जबकि ‘अनेमिया से जंग’ पाठशालाओं में सरकार द्वारा वितरित की जाने वाली आयरन की दवा को लेकर उपजे संदेह के निवारण में शिक्षकों की भूमिका को दर्शाता है। ‘राष्ट्र निर्माता’ एक नवनियुक्त अध्यापक और उसके गुरु शिक्षक के मध्य वर्तमान शिक्षा पर मोबाइल पर आपसी बातचीत है जबकि ‘जय शिक्षक’ शिक्षकों की महत्ता और छात्रों का उनके प्रति सम्मान पर प्रकाश डालता है।
‘थैली नहीं थैला’ ठेठ हरियाणवी बोली में रचा गया नाटक है जो पर्यावरण संरक्षण पर जोर देता है और पाॅलीथिन बैग से हो रही हानि की ओर इशारा करता है। संग्रह का यह अपेक्षाकृत बड़ा नाटक है। ‘कन्या भ्रूण का शाप’ व्यंग्यात्मकता लिए हुए है, जिसमें पुरुषों की टोली पत्नियों के अत्याचारों पर अपना-अपना नजरिया पेश करती है। उनका मानना है कि वर्तमान समय में महिलाओं के सशक्त होते चले जाने का मुख्य कारण कन्या भ्रूण का शाप है।
‘तिरंगा हाउस’ राष्ट्रीय ध्वज की जानकारी, राष्ट्रीय प्रतीकों के महत्व और लोगों में देशभक्ति की भावना जगाने के उद्देश्य को बखूबी व्यक्त करती है। ‘सांझ ढले’ एक विधवा की त्रासदी और वर्तमान समाज में उन जैसी विधवाओं प्रति उपज रहे नजरिये को उजागर करती है।
पुस्तक : किशोर नाट्यमाला लेखक : मधुकांत प्रकाशक : कृष्णा पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली पृष्ठ : 112 मूल्य : रु. 300.