सैली बलजीत
‘ईश्वर उवाच’ डॉ. अंजु दुआ जैमिनी का नव्यतम उपन्यास है। प्रस्तुत उपन्यास वैश्विक महामारी कोरोना के अनेक दुष्परिणामों को उद्घाटित करता है। ‘ईश्वर उवाच’ में लेखिका ने ईश्वर और मनु के बीच आज के संदर्भ में हुए संवाद को ख़ूबसूरती से चित्रित किया है। ईश्वर का मनु को बार-बार प्रकृति से क्रूरतम छेड़छाड़ की मनमानी प्रवृत्ति से हुए दुष्परिणामों से सचेत करना तथा आदमी के भीतर पनप रही विलासीय और पाश्विक प्रवृत्ति का आईना दिखाता है।
यह उपन्यास लेखिका की कोरोना काल की रचित कृति है। जब पूरा विश्व कमरों में बंद होने को अभिशप्त हो गया था तब प्रकृति को सांस लेने का अवसर मिला था… लगा था सभी कुछ पूर्ववत लौट आया है। अंधी दौड़ में भाग रहे यंत्रपुरुष मानव ने प्रथम बार अपने परिवार के महत्व को जाना था… आकाश निर्मल दिखने लगा था… नदियों ने भी प्रदूषण से निजात पायी थी। उपन्यास में लेखिक ने कोरोना महामारी से उपजी सुखद निर्मितियों की ओर संकेत किया है। आदमी के भीतर दम तोड़ रही मानवीयता के अनेक प्रसंग भी उपन्यास की महत्वपूर्ण कड़ियों के रूप में उपस्थित हुए हैं।
कोरोना काल में लॉकडाउन के दौरान लेखिका ने मनुष्य के भीतर पनपे तामसी कृत्यों को इंद्रियों द्वारा आत्मनियंत्रण करके सात्विक गुणों में परिवर्तित देखने की कल्पना भी की है। उपन्यास सात अध्यायों में विभक्त है… क्रमशः तू मुझे गढ़ने लगा, भूल जाता है सब, प्रकृति की आह ना ले, सावधान महामारी से, प्रभु की शरण में, एक में बांसुरी-दूसरे में चक्र तथा मृत्यु तक की यात्रा है जीवन… हैं। हर अध्याय की प्रासंगिकता को अंजु दुआ जैमिनी ने कुशलता से एक बुनकर की मानिंद रेशा-रेशा बुना है। लेखिका ने ईश्वर और मनु के बीच हुए संवाद में ‘पृथ्वी दिवस’ को मात्र औपचारिकता के रूप में ना मनाकर, पृथ्वी के कण-कण को संवारने और संभालने का संदेश भी दिया है… अंततः उपन्यास में प्रकृति के बिगड़ते सौंदर्य को देखते हुए लेखिका भीतर तक चिंतित है।
लॉकडाउन के चलते सच ही पृथ्वी और प्रकृति निखर उठी थी… पक्षियों का कलरव फिर से गूंजने लगा था… आकाश स्वच्छ… नदियों का जल स्वच्छ… प्रकृति ने सालों बाद खुल कर सांस ली थी… इतना कुछ प्रदान किया था तालाबंदी ने… लेकिन वैश्विक महामारी के आगे दम तोड़ रही मानवता के त्राहि-त्राहि करने के दृश्य आज भी हृदय विदारक हैं। लेखिका ने उपन्यास में अनेक छोटे-छोटे प्रसंगों के माध्यम से मनुष्य को भविष्य में प्रकृति की सुन्दरता के प्रति अंतर्मन से सचेत होने के संवाहक संदेश दिये हैं। उपन्यास ‘ईश्वर उवाच’ लेखिका के श्रम से पठनीय हो गया है और इसे कोरोना काल के अंतराल में हुए अनेक खट्टे-मीठे अनुभवों के रूप में स्मरण किया जाएगा।
पुस्तक : ईश्वर उवाच लेखक : डॉ. अंजु दुआ जैमिनी प्रकाशक : अयन प्रकाशन, महरौली, नयी दिल्ली पृष्ठ : 128 मूल्य : रु. 260.