सुभाष रस्तोगी
चर्चित कवि, कहानीकार एवं समीक्षक डॉ. तरसेम गुजराल की अब तक कविता, कहानी, उपन्यास, सम्पादन, अनुवाद तथा आलोचना की 60 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। डॉ. गुजराल ने अपनी सद्य: प्रकाशित आलोचना कृति ‘मोहन सपरा का काव्य-पथ (अनुशीलन एवं जमीन)’ की मार्फत हमारे समय के विशिष्ट कवि मोहन सपरा की सुदीर्घ कविता-यात्रा के नेपथ्य को खंगालते हुए उन सभी सुलगते सवालों पर प्रकाशवृत्त केंद्रित किया है जो वे ‘कीड़े’ से लेकर ‘रंगों में रंग… प्रेमरंग’ संग्रहों की कविताओं में प्रमुखता से उठाते रहे हैं।
‘कीड़े’ मोहन सपरा का पहला कविता-संग्रह है, जिसका प्रकाशन 1969 में हुआ। पहली लंबी कविता होने के नाते मोहन सपरा की लंबी कविताओं में इसकी एक खास जगह तो है ही। तरसेम गुजराल की यह खासियत है कि वे सीधे अपने मत को स्थापित नहीं करते बल्कि अच्छी तरह से तथ्यों को खंगालकर। मोहन सपरा की कविता ‘कीड़े’ को समांतर रख कर यह तथ्य उद्घाटित करते हैं कि ‘कीड़े’ की कविताओं में आक्रोश है, इतिहास का सच पाने की उत्कंठा है, परंतु अमूर्तता भी है जाे ‘वक्त की साजिश के खिलाफ’ में छंट जाती है। ‘कीड़े’ कविता में इतिहास है, मिथकेतिहास हैं, प्रश्न हैं जो बार-बार उठते हैं। फंतासी भी है–
मैं एक नगर देख रहा हूं
जहां विद्रोह के सिवाय कुछ नहीं होता
ऐसा विद्रोह, जिससे मेरी भावनाओं के पूर्वत् खांसते रहे हरदम।
डॉ. गुजराल राजेश सपरा की उस कसक को चिन्हित करते हैं जो दर्द उनकी ‘वक्त के खिलाफ’ कविता में उजागर हुआ है :-
उसकी हर पहचान पर
वे प्रश्न चिन्ह लगा देते हैं
उन्होंने अपने कायदे अनुसार
दादूराम को
बड़े खुले पिंजरे में
आजाद छोड़ दिया है
अब यह बात भी छिपी नहीं रही
किसी के लिए भी।
डॉ. तरसेम गुजराल के अनुसार ‘आदमी जिंदा है’ आदमियत और जिंदगी प्रदान करती कविताएं हैं। दरअसल, मोहन सपरा की कविताओं में निरंतर संघर्ष करता हुआ, जीवन की विपरीताओं से जूझता जो व्यक्ति दिखाई देता है, वह स्वयं सपरा है।
‘काले पृष्ठों पर उकेरे शब्द’ अपने समय की कविता के दस्तावेज के रूप में सामने आई है तो ‘समर्थ की पाठशाला’ की कविताएं बकौल डॉ. गुजराल जीवन के बहुविध पाठ पढ़ाती कविताएं हैं। ‘रक्तबीज आदमी है’ की कविताएं पाठक की चेतना पर सार्थक दस्तक देती कविताएं हैं तो ‘रंगों में रंग… प्रेमरंग’ की कविताएं अपने अंत:पाठ में प्रेम के विविध रंग समेटे हुए हैं।
समग्रत: यह है मोहन सपरा का काव्य-पथ और यदि तरसेम गुजराल अपनी सद्य: प्रकाशित कृति ‘मोहन सपरा का काव्य पथ’ के प्रणयन के माध्यम से न दिखाते तो कवि के काव्य-पथ के रंग एक हद तक अदेखे और अजाने रह जाते।
पुस्तक : मोहन सपरा का काव्य-पथ (अनुशीलन एवं जमीन) लेखक : डाॅ. तरसेम गुजराल प्रकाशक : आस्था प्रकाशन, जालधंर, पंजाब पृष्ठ : 143 मूल्य : रु. 195.