सुशील कुमार फुल्ल
लघु कथा आज की सर्वाधिक लोकप्रिय विधा है, ठीक वैसे ही जैसे कभी एकांकी नाटक हुआ करते थे। कम समय और कम शब्दों में अधिक सामग्री आधुनिक जीवन की व्यस्तता के अनुरूप ही है। डाॅ. अंजु दुआ जैमिनी का यह दूसरा लघुकथा संग्रह है, जिसमें अस्सी लघुकथाएं संकलित हैं। लेखिका बातचीत का ऐसा रोचक तानाबाना बुनने में दक्ष है, जिसमें विषय-वस्तु अन्तर्निहित रहती है लेकिन उस का अहसास पाठक को तभी होता है, जब वह कहानी के अन्त तक पहुंचता है।
हरिद्वार जैसे तीर्थस्थल पर मांगने वालों के चातुर्य से सम्बद्ध एक साथ तीन लघुकथाएं पाठक को भाव-विभोर कर जाती हैं और पाठक सोचता रह जाता है कि इंसान अपनी स्वार्थसिद्धि के लिए कैसे-कैसे पैंतरे आजमाता है। दान वसूली शीर्षक से तीन लघुकथाएं लेखिका की शिल्प पर पकड़ को भी दर्शाता है। ‘भय’ लघुकथा में कंजक पूजन के प्रचलन में लड़के का लड़की वेश में आना और जब उसे कहा गया कि यदि तू लड़की नहीं बल्कि लड़का है, तो अगले जन्म में तू लड़की के रूप में पैदा होगा। वह लड़का ही था तभी तो अगले जन्म के भय से वह वहां से तुरंत भाग खड़ा हुआ। मनाेविज्ञान की अद्भुत रचना ‘कबाड़’ कहानी में मां-बाप से ग्रहण किए गए संस्कारों का चित्रण एक अलग ही समस्या को दर्शाता है। आदतें छोड़नी मुश्किल होती हैं। संग्रह के शीर्षक की कहानी ‘बिजुरिया’ भी बहुत ही रोचक, चुटीली एवं व्यंग्यपूर्ण है। कहीं-कहीं लेखिका ने जोर-जबरदस्ती भी लघुकथा निर्मित करने का प्रयत्न किया है यथा ‘काला पानी’ लघुकथा में, गाइड काला पानी की सैल्यूलर जेल के बारे में बता रहा है, कैसे आजादी के दीवानों ने वहां कष्ट सहन किए परन्तु बच्चे सेल्फी लेने में व्यस्त हैं। यहां तक बच्चों के मनोविज्ञान का जिक्र बिल्कुल ठीक है परन्तु मोबाइल छीन लेने पर मां का दिल एकदम हल्का हो गया, यह कुछ अटपटा लगता है।
पुस्तक : बिजुरिया लेखिका : डॉ. अंजु दुआ जैमिनी प्रकाशक : अयन प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 120 मूल्य : रु. 260.