वेद मित्र शुक्ल
भारतीय भाषाओं में सर्वश्रेष्ठ साहित्यिक कृति का सम्मान के.के. बिरला फाउंडेशन द्वारा प्रत्येक वर्ष सरस्वती सम्मान के माध्यम से किया जाता है। वर्ष 2021 का यह महत्वपूर्ण 31वां सम्मान हिंदी भाषा के वरिष्ठ साहित्यकार रामदरश मिश्र को उनके कविता संग्रह ‘मैं तो यहां हूं’ (2015) के लिए दिया गया है। अपने जीवन के 98 वर्ष पूरा कर रहे मिश्र जी की इस कृति का सम्मान हिंदी-समाज के लिए ही नहीं सम्पूर्ण भारतीय साहित्य के लिए गौरव का विषय है। साहित्य की कई विधाओं में जैसे उपन्यास, कहानी, डायरी, संस्मरण, आलोचना, आत्मकथा आदि में सिद्धहस्त होते हुए भी मिश्र जी स्वयं को पहले एक कवि मानते हैं। विभिन्न विधाओं में उनकी सौ से भी अधिक प्रकाशित कृतियों में से 32 कृतियां कविता-संग्रह हैं। हिंदी साहित्य-संसार में प्रतिष्ठित सम्मान जैसे साहित्य अकादमी और व्यास सम्मान से उनके कविता-संग्रह ही क्रमशः ‘आग की हंसी’ और ‘आम के पत्ते’ पूर्व में सम्मानित हो चुके हैं। मिश्र जी कहते हैं कि उन्होंने विविध साहित्यिक विधाओं में रचा है, परन्तु कविता को छोड़कर नहीं बल्कि कविता के साथ-साथ रचा है।
समकालीन साहित्य में सहजता के पर्याय हो चुके रामदरश मिश्र के साहित्य के मूल में लोक-जीवन है। लोक से अर्जित और लोक को ही समर्पित की भावना से ओतप्रोत उनके साहित्य को सरस्वती सम्मान से सम्मानित कविता-संग्रह ‘मैं तो यहां हूं’ की कविताओं में पढ़ा जा सकता है। इस संदर्भ में संग्रह की शीर्षक-कविता ‘मैं तो यहां हूं’ की चर्चा करें तो पाते हैं कि वे ईश्वर और अध्यात्म की पहचान लोक-जीवन के भीतर ही करते हैं। उनका ईश्वर लोक और प्रकृति में रमा हुआ है। रूढ़िवादिता को धता बताते हुए इस कविता में वे कहते हैं :- “ऊब कर मंदिर से बाहर निकला तो देखा-/ चारों ओर पुष्पित खेत खिलखिला रहे थे/ चहचहाती चिड़ियों का महारास मचा था/ हवाएं खुशबू में नहा रही थीं/ और जड़-चेतन की त्वचा पर/ स्पंदन की कथा लिख रही थीं…/ प्रतीत हुआ/ जैसे चारों ओर एक आवाज़ गूंज रही है-/ ‘अरे, मैं तो यहां हूं, यहां हूं, यहां हूं’।”
इसी प्रकार एक अन्य कविता में अंतिम-जन और दरिद्र-नारायण की सेवा को ही पूजा मानकर ‘मैं तो यहां हूं’ दर्शन की पुनः स्थापना करते हैं जब ‘अपना-अपना मंदिर’ कविता में लिखते हैं कि “धार्मिक त्योहार का दिन था/ मंदिर रोशनी में नहा रहा था/ लोग चले जा रहे थे मंदिर की ओर-/ दीप-दान के लिए/ …पड़ोसी सेठ ने पूछा-/ मंदिर नहीं चलना है?/ आऊंगा-आऊंगा आप चलें/ सेठ चले गये/ वह कुछ देर बाद निकला/ और अंधेरे में डूबे एक घर की देहरी पर/ चुपचाप एक दीप रख आया।”
‘मैं तो यहां हूं’ की दृष्टि उनकी अन्य कविताओं में भी कहीं न कहीं व्याप्त है। अपने साहित्य-संसार में व्यष्टि से समष्टि और समष्टि से व्यष्टि की यात्रा करते हुए रामदरश मिश्र कभी किसी ‘वाद’ या वैचारिक सांचे-खांचे से नहीं बंधे। मानवीय मूल्यों से जोड़कर रखने वाले लोक की डोर थामे रामदरश मिश्र अब तक अतिप्रतिष्ठित सरस्वती सम्मान-2021 सहित साहित्य अकादमी सम्मान, व्यास सम्मान, भारतभारती सम्मान, हिंदी अकादमी शलाका सम्मान, दयावती मोदी कवि शेखर सम्मान जैसे अनेक बड़े सम्मानों से सम्मानित हुए हैं। प्रगतिशील दृष्टि से युक्त कविता-संग्रह मैं तो यहां हूं के रचनाकार रामदरश मिश्र आज के उन भारतीय साहित्य के पुरोधाओं में शामिल हैं जिनको जाने बिना समकालीन भारतीय साहित्य को जानने व समझने का दावा नहीं किया जा सकता। इस आपाधापी से भरे युग में जिस ईमानदारी, सरलता और सच्चाई से मिश्र जी एक लंबी साहित्यिक यात्रा तय करते हुए साहित्य की विविध विधाओं में रचनाकर्म से पूरी सक्रियता और मनोयोग के साथ जुड़े हुए हैं वह आने वाले समय के लिए भी प्रेरणादायी है।