जीतेंद्र अवस्थी
स्वर्णमय हो मेरा जीवन/ कुंदन सा चमकना है/ अपने श्रम की कुछ बूंदों से/ इसको नहलाना है/ हर पीड़ित मानव जन मन को/ उर से मुझे लगाना है/ तप कर संघर्षों की भट्टी में/ कनक ‘मधुकर’ कह लाना है। जीवन के प्रारंभ में ही ऐसा निश्चय कर और इसे लगातार चरितार्थ करने वाले कनक ‘मधुकर’ का नाम स्वाधीनता संग्राम और पत्रकारिता के इतिहास में बड़ी इज्जत से लिया जाता है। भीलवाड़ा के बनेड़ा कस्बे में जन्मे और वहीं के एक स्कूल में अध्यापन से कैरियर की शुरुआत करने के बाद कनक जी ने चित्तौड़गढ़ के एक विद्यालय में पढ़ाया। वहीं राष्ट्र प्रेम की भावना प्रस्फुटित हुई। स्वाधीनता संग्राम और प्रजामंडल आंदोलन में सक्रिय योगदान के अलावा लेखन और पत्रकारिता के क्षेत्रों में नए आयाम स्थापित करने वाले इस बहुआयामी व्यक्तित्व का जीवन बहुत प्रेरणादायक है। उन्हीं के जीवन, संघर्ष और सफलताओं को प्रस्तुत पुस्तक ‘स्वतंत्रता सेनानी – कनक मधुकर’ में लिपिबद्ध किया गया है। इसके लेखक प्रोफेसर मिश्रीलाल मांडोत ने करीब 4 दशक तक स्नातकोत्तर विद्यार्थियों को इतिहास व राजनीति विज्ञान की शिक्षा दी है। वह राजस्थान में प्राचार्य, शिक्षा निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी जैसे पदों को सुशोभित करते रहे हैं। पांच दशक से लेखन कार्य में भी सक्रिय हैं। राजनीति, इतिहास, स्वतंत्रता संग्राम और संस्कृति आदि विषयों पर पुस्तकें लिखी हैं। वह कुशल वक्ता भी हैं। प्रोफेसर मिश्रीलाल ने कनक जी पर केंद्रित इस पुस्तक में उस समय राजस्थान में स्वतंत्रता संग्राम, प्रजामंडल आंदोलन, पत्रकारिता और राजनीतिक व सामाजिक परिस्थितियों पर भी प्रकाश डाला है।
कनक जी ने ब्रिटिश शासकों के अलावा देसी रियासतों के राजाओं के अत्याचारों और दमनकारी गतिविधियों का विरोध और वर्णन विभिन्न समाचारपत्रों व पत्रिकाओं में किया है। उन्होंने भारतीय जनमानस में राष्ट्रीय चेतना जगाई। मधुकर जी पर तरह-तरह के अत्याचार किए गए। उन्हें जेल में ठूंसा गया। भारतीय राजाओं ने भी उन्हें कोपभाजन बनाया। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उन्हें महीनों कारागार में रखा गया। लेकिन अत्याचारों के खिलाफ ना तो उनकी लेखनी रुकी और ना ही उन्होंने संघर्ष का रास्ता रास्ता छोड़ा।
स्वाधीनता प्राप्ति के बाद मधुकर जी ने खुद को समाज सेवा, सामाजिक समरसता कायम करने और आम भारतीय के हितों को आगे बढ़ाने का बीड़ा उठाया। वर्ष 2007 में प्राण अंत तक वह लगातार सरगर्म रहे।
लेखक ने मधुकर द्वारा जेल में बिताए जीवन की झलकियां देते उनके पत्र और डायरी के अंश भी इस किताब में दिए हैं। साथ ही जयप्रकाश नारायण और अनेक महान स्वतंत्रता सेनानियों के साथ उनके जेल जीवन की झलकी भी देखने को मिलती है। इसमें प्रजामंडल आंदोलन, पत्रकारिता और उद्दात जीवन मूल्यों के प्रति उनके समर्पण का उल्लेख भी है। मधुकर जी के निधन पर स्मृति शेष खंड के तहत वरिष्ठ राजनेताओं की श्रद्धांजलि भी पुस्तक में शामिल की गई है । यह जीवनी है, इतिहास है और दस्तावेज भी। इसके बहाने इसमें स्वतंत्रता संग्राम, प्रजामंडल आंदोलन, राजस्थान की रियासतों के दमन चक्र और उनके देश विरोध की खबर भी ली गई है।
पुस्तक : स्वतंत्रता सेनानी कनक ‘मधुकर’ लेखक : प्रो. मिश्रीलाल मांडोत प्रकाशक : साहित्यागार धामणी मार्केट, जयपुर पृष्ठ : 80 मूल्य : रु. 150.