पेरिस, दो अगस्त (भाषा)Indian Hockey Team: कप्तान हरमनप्रीत सिंह के दो गोल और पी आर श्रीजेश की अद्भुत गोलकीपिंग के दम पर भारत ने 52 साल बाद ओलंपिक में आस्ट्रेलिया को हराते हुए आखिरी ग्रुप मैच में इस दिग्गज प्रतिद्वंद्वी पर 3-2 से जीत दर्ज की । भारत ने आखिरी बार पुरूष हॉकी में ओलंपिक में आस्ट्रेलिया को 1972 म्युनिख खेलों में हराया था । वहीं सिडनी ओलंपिक 2000 में आस्ट्रेलिया से 2-2 से ग्रुप मैच ड्रॉ रहा था । आस्ट्रेलिया ने तोक्यो ओलंपिक 2021 में ग्रुप मैच में भारत पर 7-1 से जीत दर्ज की थी ।
तोक्यो ओलंपिक के कांस्य पदक विजेता भारत के लिये जहां श्रीजेश ने सही मायने में ‘दीवार’ की तरह काम करते हुए असंख्य गोल बचाये तो हर मैच में गोल करते आये हरमनप्रीत ने उस सिलसिले को बरकरार रखा । वहीं पहली बार ओलंपिक खेल रहे डिफेंडर जरमनप्रीत सिंह और फॉरवर्ड अभिषेक ने विरोधी के रसूख से विचलित हुए बिना बेखौफ हॉकी खेली ।
भारत के लिये अभिषेक ने 12वें, हरमनप्रीत ने 13वें और 32वें मिनट में गोल किये । आस्ट्रेलिया के लिये क्रेग थॉमस ने 25वें और ब्लैक गोवर्स ने 55वें मिनट में गोल दागा । इस जीत से भारतीय हॉकीप्रेमियों के उन जख्मों पर मरहम जरूर लगा होगा जो दिल्ली राष्ट्रमंडल खेल 2010 के फाइनल में 8 . 0 और बर्मिंघम राष्ट्रमंडल खेल फाइनल में 7 . 0 से मिली हार के बाद मिले थे ।
इस मैच से पहले ओलंपिक में भारत ने आस्ट्रेलिया के खिलाफ 11 मैचों में से सिर्फ तीन (1960 रोम क्वार्टर फाइनल, 1964 तोक्यो सेमीफाइनल और 1972 म्युनिख ग्रुप मैच) मैच जीते थे जबकि आस्ट्रेलिया ने छह जीते और दो ड्रॉ खेले थे । भारतीय टीम पूल चरण में तीन जीत , एक ड्रॉ और एक हार के साथ बेल्जियम के बाद दूसरे स्थान पर रही और क्वार्टर फाइनल में उसका सामना पूल ए की तीसरे नंबर की टीम से होगा ।
भारतीय टीम ने पहले क्वार्टर से ही काफी आक्रामक खेल दिखाते हुए शुरूआती 15 मिनट में 2 . 0 की बढत बना ली । भारत को पांचवें मिनट में ही गोल करने का मौका मिला जब जरमनप्रीत ने बायें फ्लैंक से सुखजीत को गेंद सौंपी लेकिन वह उसे पकड़ नहीं पाये । आस्ट्रेलिया को 11वें मिनट में पहला पेनल्टी कॉर्नर मिला जिस पर जेरेमी हैवर्ड का शॉट बाहर से निकल गया ।
इसके अगले मिनट भारत ने जवाबी हमला बोला और बेल्जियम के खिलाफ पिछले मैच में गोल करने वाले अभिषेक ने तूफानी शॉट पर गेंद सीधे गोल के भीतर डाल दी । आस्ट्रेलिया के गोलकीपर एंड्रयू चार्टर को समझने का समय ही नहीं मिला । भारत ने अगले मिनट पर मिले पेनल्टी कॉर्नर पर हरमनप्रीत के शानदार गोल से बढत दुगुनी कर ली ।
हरमनप्रीत का पेरिस ओलंपिक में यह पांचवां गोल था । पहले क्वार्टर में भारत 2 . 0 से आगे था । दूसरे क्वार्टर में आस्ट्रेलियाई टीम ने आक्रामक तेवरों के साथ वापसी की और चौथे ही मिनट में पेनल्टी कॉर्नर बनाया । इस पर गोवर्स ब्लैक के शॉट को श्रीजेश ने बड़ी चतुराई से बचाया । अगले ही पल एक और पेनल्टी कॉर्नर पर भी यही कहानी रही लेकिन शॉट शार्प लाचलान का था ।
आस्ट्रेलिया के लिये पहला गोल 25वें मिनट में क्रेग थॉमस ने पेनल्टी कॉर्नर पर किया । भारत को अगले मिनट पेनल्टी कॉर्नर मिला लेकिन हरमनप्रीत गोल नहीं कर सके । तीसरे क्वार्टर में भारत को दूसरे ही मिनट में पेनल्टी कॉर्नर मिला लेकिन हरमनप्रीत का शॉट बचा लिया गया । भारतीय टीम ने वीडियो रेफरल लिया जिसके बाद भारत को पेनल्टी स्ट्रोक दिया गया और भारतीय कप्तान ने टूर्नामेंट का अपना छठा गोल करके भारत को 3 . 1 से बढत दिला दी ।
भारतीय फॉरवर्ड पंक्ति ने अभिषेक की अगुवाई में हमले बोलने का सिलसिला जारी रखा और दूसरी ओर आस्ट्रेलियाई टीम अपने कमजोर पेनल्टी कॉर्नर से जूझती रही । आस्ट्रेलिया को 45वें मिनट में मिला पेनल्टी कॉर्नर भी बेकार गया । आखिरी पंद्रह मिनट में आस्ट्रेलिया ने वापसी की भरसक कोशिशें की लेकिन भारत ने 51वें मिनट में पेनल्टी कॉर्नर बनाया ।
हरमनप्रीत इस पर हालांकि गोल नहीं कर सके । दो मिनट बार भारत को फिर पेनल्टी कॉर्नर मिला जिस पर अमित रोहिदास की फ्लिक को आस्ट्रेलियाई डिफेंडर ने बचा लिया । भारत के लिये इसी मिनट अभिषेक ने गोल कर दिया था लेकिन आस्ट्रेलिया के वीडियो रेफरल पर उसे अमान्य कर दिया गया ।
आस्ट्रेलिया को 55वें मिनट में पेनल्टी स्ट्रोक मिला जिस पर गोवर्स ने गोल करके आखिरी पांच मिनट के खेल को रोमांचक बना दिया । भारतीय डिफेंस ने आखिरी पांच मिनट जबर्दस्त संयम का प्रदर्शन करते हुए आस्ट्रेलिया के नामचीन स्ट्राइकरों को कोई मौका नहीं दिया । और इसके साथ ही यह मुकाबला भारतीय हॉकी के सुनहरे इतिहास में दर्ज हो गया ।
मैदान पर आस्ट्रेलिया से मिले कई जख्मों पर मरहम लगा गई यह जीत
पेरिस, दो अगस्त (भाषा) भारतीय हॉकी टीम को पेरिस ओलंपिक में जब बेल्जियम और आस्ट्रेलिया के साथ पूल मिला तो इसे ‘पूल ऑफ डैथ’ कहा गया । लाजमी भी था क्योंकि मौजूदा पीढी ने तो कभी ओलंपिक में आठ बार की चैम्पियन भारत को आस्ट्रेलिया से जीतते देखा ही नहीं था । लेकिन पेरिस ओलंपिक के आखिरी पूल मैच में मिली 3 . 2 से जीत ने पिछले 52 साल के इंतजार को ही खत्म नहीं किया बल्कि कई अहम मुकाबलों में शर्मनाक हार से मिले जख्मों पर भी मरहम लगा दिया ।
इसी आस्ट्रेलिया ने भारत को उसकी धरती पर 2010 में हुए राष्ट्रमंडल खेलों के फाइनल में 8 . 0 से हराया था तो दिल्ली के मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम में बैठे दर्शकों का दिल टूट गया था । बर्मिंघम में 2022 राष्ट्रमंडल खेलों के फाइनल में जब आस्ट्रेलिया ने 7 . 0 से जीत दर्ज की तो दिल्ली की यादें ताजा हो गई ।
इससे पहले तोक्यो ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने से पहले पूल मैच में भारत को आस्ट्रेलिया ने 7 . 1 से हराया था । गोलकीपर पी आर श्रीजेश , कप्तान हरमनप्रीत सिंह , मिडफील्डर मनप्रीत सिंह समेत 11 खिलाड़ी तोक्यो में उस टीम में थे और आज पेरिस में उन्होंने राहत की सांस ली होगी । ओलंपिक के इतिहास की बात करें तो भारत इस मैच से पहले 11 मैचों में सिर्फ तीन बार आस्ट्रेलिया को हरा सका था और सिडनी ओलंपिक 2000 में पूल मैच 2 -2 से ड्रॉ खेला था ।
वहीं विश्व कप में भारत को आस्ट्रेलिया पर एकमात्र जीत 1978 में ब्यूनस आयर्स में मिली है । पांच सितंबर 1960 को रोम ओलंपिक में क्वार्टर फाइनल मैच में 84वें मिनट में रघबीर सिंह भोला के गोल के दम पर भारत ने आस्ट्रेलिया को हराया था । फाइनल में भारतीय टीम पाकिस्तान से एक गोल से हार गई थी ।
इसके बाद 1964 में तोक्यो खेलों में प्रीतपाल सिंह के दो और मोहिंदर लाल के एक गोल की मदद से भारत ने सेमीफाइनल में आस्ट्रेलिया को 3 . 1 से शिकस्त दी थी । इस बार फाइनल में भारत ने पाकिस्तान को हराकर खिताब जीता । वहीं 1972 के म्युनिख ओलंपिक में भारत ने पूल मैच में आस्ट्रेलिया को 3 . 1 से हराया और तीनों गोल मुखबैन सिंह ने दागे थे ।
भारत ने इन खेलों में कांस्य पदक जीता था । इसके बाद से लगातार ओलंपिक में आस्ट्रेलियाई टीम का भारत पर दबदबा रहा । उसने 1968 मैक्सिको खेलों में भारत को सेमीफाइनल में, 1976 मांट्रियल खेलों में पूल चरण में, 1984 लॉस एंजिलिस , 1992 बार्सीलोना, 2004 एथेंस और 2021 तोक्यो खेलों में भारत को पूल चरण में हराया ।
इसके अलावा 1976 और 2000 ओलंपिक में मुकाबले ड्रॉ भी रहे । पेरिस ओलंपिक में भारत का आगे का सफर कैसा रहता है , यह तो वक्त ही बतायेगा लेकिन इस जीत को भारतीय हॉकी के इतिहास में हमेशा याद रखा जायेगा । विरोधी के रसूख से डरे बिना बेखौफ खेलने वाले युवा खिलाड़ियों को , अपना आखिरी टूर्नामेंट खेल रहे महान गोलकीपर को, मोर्चे से अगुवाई करने वाले कप्तान को और खिलाड़ियों को मानसिक रूप से मजबूत बनाने वाले कोच को भी ।