बीजिंग, 3 नवंबर (एजेंसी)
चीन के विद्वानों का कहना है कि यहां सदियों से बौद्ध धर्मग्रंथों में रामायण की कहानियों के निशान मौजूद हैं। संभवत: पहली बार इस बात का खुलासा हुआ है कि देश के उतार-चढ़ाव भरे इतिहास में हिंदू धर्म का प्रभाव भी रहा है।
बीजिंग में भारतीय दूतावास द्वारा ‘रामायण-ए टाइमलेस गाइड’ विषय पर शनिवार को आयोजित एक संगोष्ठी में धार्मिक प्रभावों पर लंबे समय से शोध कर रहे कई चीनी विद्वानों ने उन ऐतिहासिक मार्गों का पता लगाने वाली स्पष्ट प्रस्तुतियां दीं, जिनके माध्यम से रामायण चीन तक पहुंची और चीनी कला एवं साहित्य पर इसका प्रभाव पड़ा। सिंघुआ विश्वविद्यालय के अंतरराष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय अध्ययन संस्थान के प्रोफेसर एवं डीन डॉ. जियांग जिंगकुई ने कहा, ‘धार्मिक और धर्मनिरपेक्ष दुनिया को जोड़ने वाली सदाबहार कृति के रूप में रामायण का प्रभाव अंतर-सांस्कृतिक प्रसार के माध्यम से और भी अधिक महत्वपूर्ण रूप से बढ़ गया है।’ उन्होंने कहा, ‘चीन ने भी इस महाकाव्य के तत्वों को आत्मसात किया है, जिसने न केवल चीनी (बहुसंख्यक) हान संस्कृति में निशान छोड़े हैं, बल्कि चीनी शिजांग (तिब्बती)
संस्कृति में भी इसकी पुनर्व्याख्या की गई है और इसे नया अर्थ दिया गया है।’
जियांग ने कहा, ‘यह सांस्कृतिक प्रवास और अनुकूलन एक सदाबहार और सांसारिक ग्रंथ के रूप में रामायण के खुलेपन और लचीलेपन को प्रदर्शित करता है।’ उन्होंने बौद्ध लिपियों के चीनी अनुवाद का हवाला दिया, जिनमें ‘दशरथ और हनुमान को बौद्ध पात्रों के रूप में उल्लेखित किया गया है।’ जियांग ने कहा, ‘एक प्रसिद्ध उदाहरण यह है कि हनुमान को वानर राजा में बदल दिया गया, जिन्होंने बौद्ध
शिक्षाओं का पालन किया और क्लासिक बौद्ध नैतिक कथाओं में घुलमिल गए।’