संयुक्त राष्ट्र, 28 सितंबर (एजेंसी)
दुनियाभर में 10 लाख लोगों की जान लेने वाले कोरोना वायरस ने इस संकट से निपटने में देशों को एकजुट करने में संयुक्त राष्ट्र की विफलता को सामने ला दिया है। इसके साथ ही विश्व निकाय में सुधार के लिए नये सिरे से आवाजें उठने लगी हैं। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंतोनियो गुतारेस ने पिछले हफ्ते कहा था, ‘महामारी अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की स्पष्ट परीक्षा है- एक ऐसी जांच जिसमें हम निश्चित ही विफल रहे हैं। नेतृत्व और शक्ति के बीच संपर्क नहीं है।’ उन्होंने चेतावनी दी कि 21वीं सदी की एक-दूसरे से कटी हुई दुनिया में ‘एकजुटता सबके हित में है और यदि हम इस बात को नहीं समझ पाते हैं तो इसमें सभी का नुकसान है।’ महासभा में विश्व नेताओं की पहली ऑनलाइन बैठक में प्रमुख शक्तियों के बीच तनाव, गरीब-अमीर देशों के बीच बढ़ती असमानता और संरा के 193 सदस्य राष्ट्रों के प्रमुख मुद्दों पर एकमत होने में बढ़ती कठिनाई सामने आई। स्विट्जरलैंड के राष्ट्रपति सिमोनेटा सोममारूगा ने कहा, ‘हम संयुक्त राष्ट्र की आलोचना कर सकते हैं लेकिन जब हम संरा को दोष देते हैं तो दरअसल हम बात किसके बारे में कर रहे हैं? हम अपने बारे में बात कर रहे हैं क्योंकि संरा तो सदस्य राष्ट्रों से बना है। ये आमतौर पर सदस्य राष्ट्र ही होते हैं जो संरा के काम में बीच में आ जाते हैं।’
पीएम मोदी भी उठा चुके हैं सवाल
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र 50 सदस्यों के साथ बना था। सदस्य राष्ट्रों ने ‘आने वाली पीढ़ियों को युद्ध के अभिशाप से बचाने’ का संकल्प लिया था, लेकिन दुनियाभर में असमानता, भूख तथा जलवायु संकट के कारण संघर्ष बढ़ते ही गये। पंद्रह सदस्यीय सुरक्षा परिषद में वर्तमान वास्तविकताओं के अनुरूप बदलाव करने की मांग उठ रही है ताकि इसमें और व्यापक प्रतिनिधित्व हो सके। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी शनिवार को अपने संबोधन में पूछा था, ‘संयुक्त राष्ट्र की निर्णय लेने वाली समिति से भारत को अब और कितने समय तक बाहर रखा जाएगा।’